प्रेरणा स्रोत

बहुत दिनों के बाद यह चिट्ठा पोस्ट कर रहा हूँ क्योंकि घर पर कम्प्यूटर नहीं है फिर भी ऐसा शौक पाला। ब्लॉग पढ़ने और लिखने के लिए मुझे ऑफ़िस और घर से समय निकाल कर बाज़ार में किसी सायबर कैफ़े पर जाना होता है। ऐसे ही एक दिन गूगल पर पता नहीं क्या सर्च करते समय एक लिंक क्लिक करने पर अतुलजी अरोरा का ब्लॉग लाइफ़ इन ए एचओवी लेन खुल गया। बहुत ही अच्छा संस्मरण लिखा है। इसके बाद तो पिछले तीन माह से हिन्दिनी, ई-स्वामी, छींटे और बौछारें और फुरसतिया नियमित रूप से देख रहा हूँ। रवि भैया रतलामी से विशेष प्रभावित हुआ। वे समय निकाल कर नियमित रूप से पोस्टिंग करते हैं साथ ही देश की सामाजिक-राजनैतिक गतिविधियों पर उनकी चुटकियाँ बहुत चुटीली होती हैं। इसके अलावा उनके द्वारा समय समय पर जो तकनीकी जानकारी उपलब्ध की जाती है वह उत्तम, लाभदायक और मुझ जैसे नए ब्लॉगर के लिए बहुत ही मददगार होती है। इसके अलावा इधर उधर की (रमण कौल), मेरा पन्ना (जीतू भाई), रोजनामचा (अतुलजी अरोरा), आओ संस्कृत सीखें, नालायक होने का सुख (शास्त्री नित्यगोपाल कटारे), My Hindi Blog: मेरा हिन्दी चिट्ठा, निठल्ला चिंतन, नुक्ताचीनी, दिल्ली ब्लॉग के अलावा और भी अनेक ब्लॉग एक से दूसरे की लिंक के द्वारा मिलते गए और ब्लॉगर जगत के बारे में मालूम हुआ साथ ही यह भी जाना कि कुछ लोग ब्लॉगिंग के साथ-साथ अपने कार्यक्षेत्र के भी दिग्गज हैं। आप लोगों के ब्लॉग्स से ही विभिन्न ब्लॉग सेवा प्रदाताओं के बारे में जानकारी मिली। सर्वज्ञ और नारद से भी परिचय आप लोगों के द्वारा ही हुआ। मैंने भी कुछ प्रयासों के बाद अपना ब्लॉग बना ही लिया। ब्लॉग बनाने के बाद सबसे पहले मैंने अतुलजी अरोरा से संपर्क किया था। उनसे यह पूछा था कि अन्य ब्लॉगर बंधु मेरे ब्लॉग 'मालव संदेश' के बारे में कैसे जानेंगे। इस बात पर अतुलजी ने मेरी मदद के लिए मुझे मेल भेजी जिसमें बताया गया था कि मैं 'मालव संदेश' का पता नारद को दे दूँ। मैंने ऐसा ही किया और मेरे लिए यह आश्चर्य की बात थी कि मात्र दो दिनों अंदर 'मालव संदेश' पर पाँच टिप्पणियाँ थीं। टिप्पणी देने वालों में अनूपजी शुक्ला 'फुरसतिया' वाले, आशीषजी खाली पीली वाले, जीतू भाई 'मेरा पन्ना' वाले, नितिनजी व्यास पहला पन्ना वाले और कोई अनुनादजी सिंह भी हैं। जीतू भाई ने तो बहुत हौसला दिलाया और लगातार लिखने की उम्मीद भी रखी। अब जीतू भाई मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूँगा। आप लोगों की टिप्पणियों से जो खुशी मुझे हुई शायद सभी ब्लॉगर्स को होती होगी। इतना तो है कि कोई हमारी लिखी गई बातों को पढ़ता है।

अब बात कुछ मेरे अंचल की। संदर्भ मैं केवल मालवा का दे रहा हूँ परंतु बात पूरे देश पर लागू होती है। जब मैं अपने बचपन को याद करता हूँ तो धार शहर की गलियाँ या आ जाती हैं। मुझे याद है आज से लगभग बीस वर्ष पहले वर्षा के मौसम में कई बार आठ-आठ दिनों की झड़ी लग जाती थी। हम बच्चों को भी तीन-चार दिन की छुट्टियाँ मिल जाया करती थीं। यह स्थिति आठ-दस साल पहले तक भी कभी-कभी बन जाती थी। तब धार ही नहीं पूरे मालवा क्षेत्र में कुओं-बावड़ियों में इतना जलस्तर होता था कि बिना किसी रस्सी के ऊपर से ही बाल्टी डाल कर पानी निकाला जा सकता था। गर्मी के दिनों में भी कुएँ साथ नहीं छोड़ते थे। गर्मियों के मौसम में भी बहुत अधिक गर्मी नहीं होती थी। ‍फिर आया विकास का दौर और गहरे नलकूप खोदे जाने लगे। धीरे-धीरे धरती को छलनी बना दिया गया। किसी समय 25 फ़ीट पर पानी मिल जाता था आज 300 से 500 फ़ीट की खुदाई करना पड़ती है फिर भी पानी निकलने की संभावना कम ही होती है। कभी मालवा के बारे में यह कहावत प्रचलित थी 'मालव धरती गहन गंमीर पग पग रोटी डग डग नीर'। परंतु आज जनवरी से ही पानी के लिए भागदौड़ शुरु हो जाती है। कभी हरा-भरा रहने वाला मालवा आज रेगिस्तान बनने की कगार पर है। इन्दौर से उज्जैन, धार या देवास जाते समय दूर तक केवल खेत ही खेत नज़र आते हैं। पेड़ों का कोई नामोनिशान नहीं मिलता। कुछ इक्के-दुक्के बबूल के कँटीले पेड़ मिल जाते हैं। कुछ ऐसा ही पूरे भारत में हो रहा है। वनों के विनाश से वन्य जीवन और जैव ‍विविधता को तो खतरा है ही साथ ही मानसून भी धोखा दे जाता है। वर्षा सामान्य से कम होने लग‍ी है तो कहीं पर बाढ़ की समस्या जोर पकड़ने लगी है। पेड़ों के न होने से पृथ्वी की ऊपरी उपजाऊ परत हवा में उड़ जाती है और वर्षा के पानी के साथ बह जाती है। पृथ्वी के तेजी से कम होते जल स्तर को रोकने और स्तर बढ़ाने के लिए भूजल संवर्धन आज अति आवश्यक है। यह ठीक वैसा ही है जैसे कोई बैंक खाता। बैंक खाते से पैसा निकालते रहने से वह समाप्त हो जाता है तो उस खाते में फिर से पैसा जमा करना होता है। ठीक इसी प्रकार वर्षा जल को भी प्रति वर्ष समय पर पृथ्वी में उतारा जाए तो भारत में पीने के पानी की समस्या को दूर किया जा सकता है। इसके विभिन्न तरीके हैं जो लगभग प्रत्येक शहर में किस संस्था के पास उपलब्ध होंगे। बात केवल जागरुकता की है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सरकार का मुँह देखने के बजाय आम आदमी बोरिंग को रिचार्ज करवाए, रूफ हार्वेस्टिंग अर्थात् छत का पानी जमीन में उतारे, गाँवों में स्थानीय नदी-नालों पर स्टॉपडेम बनवाए? इसके अलावा पेड़ों को कटने से बचाना और नए पेड़ भी लगाए जाना भी आवश्यक है। यदि भारत के 25 प्रतिशत लोग भी ऐसा ईमानदारी से कर लें तो संभवत: पानी की समस्या से बहुत-कुछ निज़ात पाई जा सकती है।   

17 Responses

  1. अतुल जी, वृक्षों की कमी, शुद्ध हवा की कमी, और पानी की कमी हर चिन्तनशील भारतीय को खटक रही है | मालवा में इनकी कमी अपने विकरालम रूप में आ गयी है | इन्दौर शहर में निकलने पर तो ऐसा लगता है कि हम किसी जहरीली गैस के एक बहुत बडे चैम्बर में घूम रहे हों | सही समय पर आपने लेख लिखा है | इन्दौर को पुन: वृक्षों से भर देने का संकल्प और उस दिशा में सार्थक प्रयत्न करने की आवश्यकता है | सभी शहरों में निजी वाहनों के प्रवेश पर कर लगाना चाहिये | इन वाहनों के कारण शहर में पैदल चलना सबसे दुस्कर कार्य हो गया है |

    (( मेरा भी एक चिट्ठा है ; यहाँ देखिये : http://pratibhaas.blogspot.com/ ))

  2. साईबरकैफे से जा कर पोस्ट करना – आपकी हिम्मत वा हिन्दी चिठ्ठों से प्रेम की दाद देनी होगी|

  3. स्वागत है अतुल जी,
    जितने भी लोगों ने जब पहले पहल चिठ्ठा लिखना शुरु किया तब लगभग सभी का यही हाल था, टिप्पणीयों को देखकर ही सभी को ज्यादा लिखने की प्रेरणा मिली, वैसे आपने समीर लाल जी (कुंडलियों के विशेषज्ञ) का ” अपना ब्लॉग बेचो भाई” पढ़ा या नही? चलिये मैं ही आपको लिन्क दे देता हुँ। http://udantashtari.blogspot.com/2006/05/blog-post_04.html

  4. प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती. 🙂

    धन्यवाद.

    और धन्यवाद इसलिए भी कि आपने एक बहुत ही ज्वलंत विषय को उठाया है.

    पूरे भारत में अच्छी भली वर्षा होती है – 1000 मिमी से ऊपर. परंतु फिर भी बरसात के चार महीनों के बाद प्रायः हर जगह गंभीर जल की कमी हो जाती है.

    योजना बनाने वाले लोगों ने नागरिकों के कर्तव्यों का समावेश ही नहीं किया. लोग पानी जमीन से निकालने लगे अंधाधुंध. पर धरती के गर्भ में पानी वापस भरने का कोई प्रयोजन नहीं किया.

    नतीजतन सजा सभी भुगत रहे हैं.

  5. पानी की समस्या के बारे में सच लिखा है। लिखते रहें। पढ़न तथा टिप्पणी करने के लिये हैं हम लोग!

  6. पर्यावरण कि चिंता को लेकर आपने अच्छा लिखा हैं. पर्यावरण का नाश खुद मानव के अस्तित्व के लिए चुनौती बनने वाला हैं.
    टिप्पणीयों कि चिंता छोड कर विविन्न मुद्दो पर लिखते रहे, आपको बहुत से लोग पढ रहे हैं, भले ही वे टिप्पणीयाँ न कर रहे हो.

  7. शायद आप को मेरा प्रश्न कुछ अटपटा सा लगे, पर मालवा कौन सा इलाका है, कौन कौन से शहर आते हैं इसमें ? बचपन में मालवा की लोककथाएँ जैसी किताबें पढ़ी अवश्य थीं पर यह किस जगह की बात हो रही है, ठीक से समझ नहीं आया. इंदोर की बात करते हें यानि कि मालवा मध्यप्रदेश का भाग है ? और इसे मालवा क्यों कहते हैं ?

  8. सुनिलजी का प्रश्न मेरा भी. यह मालवा है कहाँ.

  9. बहुत खूब जनाब, आगे भी लिखते रहें, पिछले तीन वर्षों से मैं खुद अपना ब्लॉग साईबर केफे से पोस्ट कर रहा हूं।

  10. अतुल जी,

    सर्वप्रथम इस सारस्वत कार्य के लिए आपको कोटिश: धन्यवाद. निश्चित तौर पर आपने एक ऐसे वैश्विक ज्वलंत मुद्दे पर अपनी कलम चलाई है जिसके बारे में अगर हम सब अभी नहीं चेते तो फिर चित हो जाएँगे. मालवा के ”मलबा” बनने की दिशा में अग्रसर होने की आपकी व्याकुलता देखकर ऐसा लगता है कि अभी भी आशा की चिंगारी कहीं विद्यमान है.

  11. मालवा के बारे में यहाँ पढें
    http://en.wikipedia.org/wiki/Malwa
    मध्यप्रदेश का के देवास, धार, इन्दौर, झाबुआ, मंदसौर, नीमच, राजगढ, रतलाम, शाजापुर, उज्जैन और गुना व सीहोर के कुछ हिस्सों के साथ साथ राजस्थान के बांसवाडा व चित्तौडगढ के हिस्सों को मालवा कहते हैं।
    अतुल जी, जीवटता को मेरा सलाम है।

  12. हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है अतुल जी। 🙂
    नारद और सर्वज्ञ की ही भांति परिचर्चा भी बिरादरी का एक सामूहिक प्रयास है जिसे आप उत्तम पाएँगे। वहाँ भी हाजिरी लगाना ना भूलिएगा। 😉

  13. आदरणीयाः राजेश महाभागाः नमस्कारः
    अहमिच्छामि यत् अस्मिन् समूहे संस्कृत भाषायां सवादः भवेत्।शनैःशनैः सर्वेषामभ्यासः भविष्यति।देवनागरी लिपि-लेखनाभ्यासः अपि भविष्यति।
    अहं रविवासरे सायं सार्ध सप्त वादने आनलाइन संस्कृत संभाषणस्य कक्षां चालयामि। तस्यां कक्षायाम् भवन्तः सर्वे निम्न संकेते आनलाइन भवन्तु तत्र अनेकेभ्यः देशेभ्यः संस्कृतानुरागिणः संमिलिताः भवन्ति।याहू मेसेन्जर मध्ये easy_sanskrit@yahoo.com
    http://www.sanskritseekho.blogspot.com
    http://www.netamahabhartam.blogspot.com
    संकेते सम्पर्कं स्थापयन्तु।
    शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

  14. अतुल जी आपने ठीक कहा, आपके हिन्दी चिट्ठाजगत में प्रवेश की कहानी बिल्कुल मुझसे मिलती है। ईश्वर करे आप हिन्दी चिट्ठाजगत में अपनी सशक्त पहचान बनायें।

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

%d bloggers like this: