वे स्त्री स्वातंत्र्य पर व्याख्यान देकर लौट रहीं थीं। वे शहर के गर्ल्स कॉलेज में प्रोफ़ेसर हैं। अभी अभी उम्र के तीन दशक पार किए हैं। वर्तमान में वे भारतीय समाज में स्त्री की दशा पर एक शोध ग्रंथ लिख रही हैं। अपने स्टाफ़ में वे एक दबंग और स्वाभिमानी महिला के रूप में जानी जाती हैं। उनके ओजस्वी भाषण की बहुत तारीफ़ हुई, शहर का मीडिया भी अख़बारों के अगले दिन के संस्करण के लिए उनकी प्रशंसा की तैयारी कर चुका था। उन्होंने आज की नारी की आज़ादी के लिए ज़ोरदार वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि आज नारी पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर हर क्षेत्र में भागीदारी कर रही है। कल्पना चावला, सानिया मिर्जा आज की हर लड़की की आदर्श हैं। आज हर स्त्री अपने निर्णय स्वयं लेने के लिए स्वतंत्र है, फिर चाहे बात उसके पढ़ाई-सर्विस की हो या शादी की। ये इक्कीसवीं सदी है और औरत अपनी बेड़ियाँ तोड़ चुकी है। उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं है – न घर में न बाहर। वह अपना जीवन स्वयं की इच्छानुसार जी सकती है। अपने शब्दों और तालियों की गड़गड़ाहट में खोई वे अपने घर कब पहुँच गईं पता ही नहीं चला। घर के आँगन में उनकी हमउम्र भाभी झाड़ू लगा रही थीं। वे भी उच्च शिक्षित थीं और विवाह के पहले बैंक में कैशियर के पद पर कार्यरत थीं। घर वालों की तथाकथित इज्जत, कि बहू घर के बाहर काम नहीं करेगी, के लिए उन्होंने अपनी अच्छी-भली बैंक की नौकरी कुर्बान की थी। जैसे ही प्रोफ़ेसर महोदया की कार ने आँगन में प्रवेश किया, भाभी को देख उनका पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा। वे बुरी तरह से चीखीं, ‘माँऽऽऽऽऽऽ ओ माँऽऽऽऽऽ देखो तो भाभी को! यहाँ आँगन में खुल्लेऽऽ सिर घूम रही है… लाज शरम सब बेच खाई है… ऐसे कैसे सिर से पल्ला खिसक जाता है… इसके तो सिर में एक खूँटी ठोक दो तो उसपे साड़ी अटकी रहेगी’।
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