अक्तूबर माह में इन्दौर में एक अनोखे ढंग से विरोध प्रकट किया गया। जैसा कि संभवत: पूरे भारत में प्रचलन है शहर में किसी नेता के आगमन पर विभिन्न स्थानों पर यातायात को नज़रअंदाज कर सैकड़ों होर्डिंग्स लग जाते हैं। ऐसा ही इन्दौर में भी आए दिन होता रहता है, केवल होर्डिंग्स ही नहीं स्वागत द्वार भी खड़े किए जाते हैं। बरसाती कुकुरमुत्तों की तरह कई स्वागत समितियाँ पैदा हो जाती हैं। आने वाले बड़े नेता को यह बताता जरूरी हो जाता है कि प्रभुजी हम भी आपके पीछे पीछे हैं, हमारा ध्यान रखना। स्वागत की प्रक्रिया अन्य पार्टियों के सामने शक्ति प्रदर्शन भी होती है। जिस समय जुलूस निकलता है तब तो यातायात बिगड़ता ही है परंतु इन बेतरतीबी से उगे स्वागत द्वार और होर्डिंग्स से आम जनता वैसे भी त्रस्त रहती है। वह किसी से शिकायत भी नहीं कर सकती क्योंकि उसे मालूम है कि कहीं सुनवाई नहीं होने वाली। यहाँ तक कि नगर निगम और पुलिस प्रशासन भी ऐसे कामों में हाथ नहीं डालते। क्योंकि ये लोग भी जानते हैं कि उनके द्वारा उठाया गया कोई कदम उन्हें ही संकट में डाल सकता है, और फिर वे भी इस तंत्र का ही एक हिस्सा हैं। ऐसा केवल स्वागत में ही नहीं बल्कि इस जनप्रतिनिधियों के जन्मदिवस पर भी होता है। विभिन्न जन्मदिन मनाओ समितियाँ अपना कर्त्तव्य पूरा करने कोई कसर नहीं रखतीं। स्वागत और जन्मदिन पर लगने वाले होर्डिंग्स, स्वागत द्वार, पोस्टर आदि कम से कम एक दिन पहले से लग जाते हैं फिर इनके हटाए जाने का कोई काम नहीं। ये होर्डिंग्स लंबे समय तक धूल, धूप, धुआँ, पानी झेलते रहते हैं, नेताजी के चेहरे का रंग उड़ जाता है, जनता कुढ़ती रहती है, बचती-बचाती अपनी राह चल देती है। चूँकि जनता इन्हें शीश नहीं नवाती इसलिए कभी-कभी ये होर्डिंग्स ही किसी के शीश पर अवतरण कर लेते है। ऐसे ही किसी त्रस्त व्यक्ति ने इन सबके विरोध का एक नया तरीका ढूँढ निकाला। कहते हैं कि जहर जहर को मारता है, इसलिए उसने भी एक होर्डिंग लगाया, शहर के हृदयस्थल राजवाड़ा पर। शहर के सभी प्रमुख समाचारपत्रों ने इसका चित्र छापा। देखते ही देखते नगरनिगम और पुलिस प्रशासन ने तत्परता से कई होर्डिंग्स आदि हटवा दिए। कुछ जनप्रतिनिधियों ने स्वयं अपने कार्यकर्त्ताओं को भेज कर ये सभी चीज़ें हटवाईं। होर्डिंग ऐसा था कि दो दिन लगे रहने के बाद ही किसी ने उस फाड़ दिया। होर्डिंग में क्या था यह आप स्वयं नीचे देख लीजिए…
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वाह!! भई भोत सई..
मतल्ब के भोत ई सई..!!
में तो के रिया हूँ ऐसे नेताहोनों को एसाईच सबक सिखाना चईये.
सच में यार, इन लोगों का तो क्या किया जाये अपन को तो समज ई नीं आता.
ये हुयी ना बात ! 🙂
बहुत अच्छे
दिल खुश हो गया।
वाह भाई वाह
“भोत सई!”
इसे कहते है-सांप मर जाए और लाठी न टूटे।
वाह… सही आइडिया निकाला 🙂
बहुत सही किया भाई। मै कुछ दिन पहले पुणे गया था तो वहाँ भी मै यह देखकर हैरान रह गया कि विज्ञापनो के तो ठीक पर राजनैतिक होर्डिंगो से पुरा शहर पटा पडा है। भाई श्री फलाना, भाई श्री ढिंकला, कोई सोनिया को थेन्क्यु कह रहा है कोई पवार को। बाप रे बाप
ये भी खूब रही! 🙂
वाह!! क्या जीवंत सोच है आपकी, और विशेषकर यह शीर्षक इतना आकर्षक है कि कोई भी यह लेख पढ़े बिना रह ही नहीं सकता, आगे बढ़ते बढ़ते आपकी लेखन शैली भी मन मोह लेती है. उम्मीद है कि आपका अगला लेख जल्दी ही पढ़ने को मिलेगा.
सत्य वचन!
वाकई गाँधीजी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं.
वाह-वाह ! स्वागत का यह तरीका जोरदार था।
वाह! क्या बात है . ये हुई न बात . विरोध प्रदर्शन का बहुत ही रचनात्मक तरीका निकाला भाई ने . मामला जम गया .
मुद्दों की कभी भारत में तो बिलकुल नहीं है। ऐसे में राजनीति पर कटाक्ष करना वो भी राजनीति के अंदाज़ में बहुत भा गया। इस पशुप्रेमी की सरलता नेताओं को भी लज्जित कर दे (पर संभवत: ऐसा अधिक समय के लिए नहीं होगा। फिलहाल इस पर प्रकाश डालने का प्रयास सराहनीय।
ऐसे जागरुकता प्रयास पर ‘अतुल भाई’ का भी हार्दिक अभिनंदन!
वाह …. दिल को छू गया इनका यह प्रयास.
किस महान आत्मा के दिमाग की उपज है यह ??
यह देख मेरा भी विचार बन रहा है अखिल भारतीय शूकर समाज की ओर से दधिकान्दो पर बधाई वाला होर्डिन्ग लगवाने का! 🙂
आपकी रचना के साथ प्रस्तुत है आज कीनई पुरानी हलचल
बढ़िया प्रयास