कल इस चिट्ठे को एक वर्ष पूरा हो गया। समय की कमी के कारण इस पोस्ट कल नहीं लिख सका इसलिए चिट्ठे के जन्मदिन के दूसरे दिन मैं यह पोस्ट डाल रहा हूँ। ठीक एक साल पहले 6 जून 2006 को पहली पोस्ट लिखी थी और देखते ही देखते एक साल गुजर गया पता ही नहीं चला। जब इस पोस्ट को लिखने के लिए पहली पोस्ट को देखा तो मालूम हुआ कि चिट्ठे की शुरुआत वाले दिन में कुछ खास बात है; तारीख 6, महीना छठा (जून) और इक्कीसवीं सदी का छठा साल (2006)। वैसे देखा जाए तो यह दिन केवल लिखने के प्रयास की शुरुआत का दिन है। चिट्ठों की गलियों में भटकना तो 2006 की आधी फरवरी से ही शुरु कर दिया था। इन्हीं दिनों एक दिन गूगल पर कुछ सर्च करने पर गूगल ने जो सूची दी थी उसमें एक लिंक अतुलजी अरोरा के संस्मरण ब्लॉग लाइफ इन ए एचओवी लेन के लिए थी। वहाँ जाने पर बहुत हैरानी हुई थी। हैरानी इसलिए कि यह सब उनका हिन्दी में व्यक्तिगत लेखन था अर्थात् यह कोई समाचार पत्र, पत्रिका की साइट नहीं थी। उस समय तक इंटरनेट साइट्स के बारे में मेरा ज्ञान इतना ही था कि केवल सरकारी-निजी संस्थान, कंपनियाँ, शिक्षा संस्थान, व्यापारिक संगठन, संस्था आदि ही साइट बना सकते हैं। अपनी निजी साइट बनाना आम आदमी के बूते के बाहर है क्योंकि नेट पर जगह पाना बहुत मँहगा हो सकता है और उससे भी बड़ी बात, साइट का खाका तैयार करने के लिए किसी वेब डिज़ाइनर की सेवा लेना अतिआवश्यक है। इसके अलावा मैं केवल इतना जानता था कि हिन्दी तो केवल कुछ गिने-चुने समाचार पत्रों, पत्रिकाओं की साइट पर देखी जा सकती है, बाकी तो इंटरनेट पर सभी कुछ अंग्रेजी में है। गूगल पर हिन्दी शब्दों की खोज तो केवल उत्सुकतावश की थी। उसी उत्सुकता से अतुलजी का संस्मरण पढ़ना शुरु किया तो पढ़ता ही चला गया, इतनी रोचक, बांधे रखने वाली सरल भाषा में लिखा गया है किसी कोई भी भाग अधूरा छोड़ने का मन ही नहीं करता था। आज भी इसे पढ़ने में वही आनंद आता है जो पहली बार आया था। एक ही कमी है इस पर टिप्पणियाँ बहुत ही कम हैं (मैंने खुद ने ही नहीं डाली अब तक 😦 )।
यहीं से शुरु होता है अंदर उतरते जाने का सफर। मुझे टिप्पणियों में जो नाम दिखाई दिए उनमें से दो थे जितेन्द्रजी चौधरी और अनूपजी शुक्ला। इनके नामों पर क्लिक करके देखा तो दूसरे दरवाजे खुलना शुरु हुए। मैं हर चिट्ठे की टिप्पणी के माध्यम से अगले चिट्ठे पर जाता था। जिस भी नए चिट्ठे पर जाता उसका URL कॉपी करके रख लेता। इस तरह फ़रवरी के अंतिम सप्ताह से लेकर मई तक मैंने लगभग 150 चिट्ठों की सूची तैयार कर ली थी। जी हाँ, उस समय तक नारद के बारे में ठीक से नहीं जान पाया था। बीच में किसी चिट्ठे पर नारद के बटन को क्लिक किया था और जाकर देखा तो बहुत सारे शीर्षक हैं और उनके नीचे चार चार लाइनों का विवरण है। मैंने सोचा, ‘यह कुछ अजीब चिट्ठा है, सब पोस्ट अधूरी डिस्प्ले होती है।’ बाद में चिट्ठों को पढ़ पढ़ कर समझ में आया कि नारद एक जंक्शन है और हर चिट्ठे की रेल यहीं से होकर गुजरती है। किसी चिट्ठे पर बुनो कहानी का जायजा लिया, तो किसी से होकर सर्वज्ञ पर पहुँचा। इसी तरह अनुगूँज, अक्षरग्राम, निरंतर, चिट्ठाविश्व, ब्लॉगनाद आदि के बारे में जाना। तब भी मैं इन सबको अलग अलग चिट्ठे समझता था। बाद में जाना कि ये सभी नारद के समवेत स्वर () हैं। इसी दौरान इन चिट्ठों को पढ़ते पढ़ते यह जाना कि ये चिट्ठे ब्लॉग कहलाते हैं और ब्लॉग का हिन्दी शब्द चिट्ठा मान्य किया गया है।
इतने चिट्ठों से यह मालूम हुआ कि ब्लॉगर एक सेवा है जो लोगों को निशुल्क चिट्ठा बनाने और होस्टिंग की सुविधा देता है। तो मई माह में मैंने भी ब्लॉगर पर पंजीयन किया और चिट्ठा बनाने बैठे, परंतु जब एक छोटी सी पोस्ट लिख कर पब्लिश करने गए तो 71% पर जाकर गाड़ी अटक गई। दोबारा प्रयास किया तो फिर 71% पर जाकर विराम लग गया। एक बार और कोशिश की परंतु वही ढाक के तीन पात। अब तो हिम्मत जवाब दे गई थी। शायद नेटवर्क की या कोई अन्य समस्या रही होगी अलबत्ता चिट्ठा बनाने का विचार कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया। मैंने सोचा था कि चिट्ठा न बने तो भी कोई बात नहीं पंजीकरण टिप्पणी देने के काम आएगा क्योंकि बहुत से चिट्ठों में टिप्पणी करने के लिए लॉग इन करना होता है और इसीलिए शुरु में तो यही समझ लिया था कि केवल एक चिट्ठाकार ही दूसरे चिट्ठाकार के चिट्ठे पर टिप्पणी दे सकता है (हाल ही में कुछ दिनों पहले इसी लॉग इन करके टिपियाने की प्रथा के कारण ही ब्लॉगर पर दोबारा पंजीयन किया)। फ़रवरी से मई तक कहीं भी टिप्पणी नहीं की थी। थोड़ा सा भय भी था क्योंकि पुराने लोग बेतकल्लुफ थे और हमें लगता था कि इनके बीच में हम कहाँ कूद पड़ें, बेवजह ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ ठीक नहीं। तो मैं साक्षी भाव से चिट्ठों को निहारे जा रहा था कि अचानक एक दिन बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा। कुछ चिट्ठों की पोस्ट में संदेश देखा कि वे ब्लॉगर से वर्डप्रेस डॉट कॉम के घर पर जा रहे हैं (वो कौन से चिट्ठे थे अब याद भी नहीं है)। अब तक एकत्र किए ज्ञान से इतना समझ में आ गया कि ये ब्लॉगर जैसी कोई दूसरी सेवा है जहाँ चिट्ठे बनाए जा सकते हैं। उन बंधुओं के बताते पते पर जाकर उनके नए चिट्ठों को निहारा, वे कुछ अलग-अलग से लगे, तो मैंने सोचा लगे हाथ वर्डप्रेस पर ही चिट्ठा बना कर देख लिया जाए। यहाँ पर बहुत ही आसानी से चिट्ठा बन गया तो मालव संदेश यहीं पर शुरु हो गया जो आपके सामने हैं। यह चिट्ठा ब्लॉगर और वर्डप्रेस के गुण-अवगुण देख कर नहीं बनाया बल्कि जहाँ आसानी से बन गया वहीं डेरा डाल लिया।
यह तो मेरे चिट्ठे के निर्माण तक की गाथा थी। इसमें मुख्य रूप से मैंने चिट्ठों को देखने-पढ़ने और स्वयं का चिट्ठा बनाने की बात की। फ़रवरी से मई तक लगभग तीन माह तक मैंने जो तकरीबन 150 चिट्ठे देखे उनमें से अनेक पर आज भी लेखन जारी है और कई ऐसे भी हैं जो एक अरसे से सोए पड़े हैं। मैं चाहता हूँ कि जो कुछ उस समय मैंने देखा, पढ़ा समझा कुछ उसके बारे में बताऊँ, कुछ उन चिट्ठों और चिट्ठाकारों के बारे में बताऊँ जिन्हें मैंने उस समय पढ़ा और बाद तक पढ़ता आया हूँ। जो एक साल आप लोगों के साथ गुजारा उसके बारे में भी लिखना चाहता हूँ। इस एक वर्ष में चिट्ठा जगत में जो परिवर्तन मैंने अनुभव किए उसे आपके साथ बाँटना चाहता हूँ। इस दौरान बहुत से नए साथी आए उनके बारे में बात करना चाहता हूँ। परंतु अभी इन सब बातों को समेटने के लिए समय कुछ कम लग रहा है क्योंकि सूत्र सारे बिखरे पड़े हैं इसलिए इस पोस्ट को यहीं विराम दे रहा हूँ। शेष बातें इसी पोस्ट की अगली कड़ी में देने का विचार है।
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पुनश्च: अरुण के आग्रह पर भूल सुधार करते हुए जन्मदिन का केक आप सभी के लिए प्रस्तुत कर दिया गया है।
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चिट्ठे की वर्षगांठ पर बहुत बहुत मुबारक बाद आप को… आप सालो साल लिखते रहें यही हमारी मनोकामना है
जन्म दिन की शुभ कामनाये,
केक फ़ोरन भिजवाये
या पता दे
हम कोरियर वाले को भिजवाये
(केक लाने के लिये)
@mohinder
मोहिन्दरजी धन्यवाद।
@arun
अरुण भाई कोरियर वाले को भेजने की जरूरत नहीं हम खुद ही केक भिजवाए देते हैं।
बहुत बहुत बधाई भाई
केक तो अच्छा है, लेकिन यार शक्कर ज्यादा है। खैर चलेगा।
अतुल जी चिटठाकारिता के सफलतापूर्वक एक साल पूरे करने के लिए हमारी शुभकामनायें । हम जैसे लोगों पर अपना आर्शिवाद बनाये रखें ।
बधाई अतुल शर्मा जी;
आगे भी आपके कीबोर्ड में और भी ताकत आये.
आप आने वाले साल और उसके बाद आने वाले सालों में अपनी लेखन क्षमता का पूरा उपयोग कर पायें.
Hey, that’s a clever way of thniinkg about it.
वाह!! चिट्ठे का पहली वर्षगांठ की बहुत बधाईयाँ. अब बड़े हो गये. 🙂
केक तो बढ़िया हैं, पूरा ही खा लेते हैं. ऐसी ही अनेकों वर्षगांठें मनें और हम केक खाते रहें-बहुत शुभकामनायें.
बहुत बहुत बधाई
बहुत-बहुत बधाई!
बहुत खुब देखते ही देखते आपने एक साल पूरा कर लिया. अब पक्के ब्लोगर हो गए हैं. हमारी ओर से ढ़ेर सारी शुभकामनाएं व बधाई.
हार्दिक बधाई
बहुत बहुत बधाई हो भाई। 🙂
हार्दिक बधाई
बधाई व शुभकामनाएं
Shoot, so that’s that one supspseo.
ब्लॉग की वर्षगांठ पर बहुत-बहुत बधाई!
@जीतू
जीतू भैया धन्यवाद, एक दिन ज्यादा शकर का केक ही खा लीजिए।
@Sanjeeva Tiwari
संजीवजी, आपका धन्यवाद। भैया हम तो अभी भी ट्रेनी हैं और केवल एक साल ही पूरा किया है। यहाँ पर आशीर्वाद देने के लिए बहुत से वयोवद्ध, ज्ञानवद्ध हैं।
@धुरविरोधी
धुरविरोधी बंधु, मैं उम्मीद करता हूँ कि जो भावना आपने मेरे लिए प्रकट की, मैं उसे आकार दे सकूँ।
@समीर लाल
हाँ समीर भैया, थोड़ा सा तो बड़ा हो ही गया। आपका स्नेह और आशीर्वाद बना रहे। केक तो मैं आपको खिलाता रहूँगा।
@pankaj bengani, @अनूप शुक्ल, @PRAMENDRA PRATAP SINGH
पंकज भाई, अनूपजी और प्रमेंद्र भाई आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
@Jagdish Bhatia, @ आशीष, @Sanjeet Tripathi
जगदीशजी, आशीषजी और संजीत भाई आप लोग भी मेरी ओर से धन्यवाद स्वीकारें।
@प्रिंयकर
प्रियंकरजी आप मेरे चिट्ठे पर पहली बार आए हैं। इसलिए आपको मैं विशेष रूप से धन्यवाद देता हूँ।
बहुत बधाई
केक तो सारे भु……. चट गये हमारे हिस्से में कुछ नहीं बचा। शायद देर से आने की सजा मिली है। खैर …
आपको आपके चिट्ठे के पहले जन्मदिन पर हार्दिक बधाई।
सालगिरह की बहुत-2 बधाई.
आप नित्य, ढेरों लिखें यही कामनाएँ हैं.
अतुल जी, एक वर्ष पूरा होने की बधाई..
आप लिखें हजारों पोस्ट..
हर पोस्ट की टिप्पणी हों पचास हजार..
🙂
Aap hi ki tarah kuch mera bhi anubhav isi prakar ka hai. Ek varsh poora karane le liye badhai. Aage bhi isi prakar se likhate rahenge, aisa vishvas hai
Dr. D.B.Bajpai
अरे हम पीछे रह गये क्या जी … बधाई हो जी बधाई …हम केक वेक तो खाते नहीं जी …हां वो क्या बोलते है .. अंगूरी …वो मिलेगी क्या जी…??
@उन्मुक्त
उन्मुक्तजी आपका धन्यवाद।
@सागर चन्द नाहर
सागर भैया दिल छोटा न करें, आपके लिए दूसरा केक ले आएँगे।
@रवि
रवि भैया आपके आशीर्वाद मैं अवश्य बहुत सा और अच्छा सा लिखता जाऊँगा।
@Nitin Bagla
नितिनजी आपके मुँह में घी-शकर।
@etgind
बाजपेय बहुत बहुत धन्यवाद।
@काकेश
काकेशजी धन्यवाद, पर आप वाकई पीछे रह गए, क्योंकि यदि आप केक खाते भी होते तो अब तक कुछ बचा नहीं था। हाँ वो अंगूरी की व्यवस्था तो फिलहाल नहीं है, अब अगली बार से पहले से व्यवस्था करने रखेंगे।
अतुलजी, मालव संदेश के जन्मदिन पर बधाईयाँ!
मुझे नहीं लगता कि आपके चिट्ठे के जन्मदिन का उपहार इस पोस्ट से बेहतर कुछ और हो सकता था। और मैं ये कैसे भूलूँगा कि आप ही ने मुझे भी चिट्टाकार बना दिया (वैसे मैं तो यही कहूँगा कि अभी तक पूरा चिट्ठाकार नहीं बना हूँ)। फिर भी आपको हर्ष पूर्ण शुभकामनाएँ।
और हाँ केक बड़ा अच्छा लग रहा है।
पहली बार अतुल जी आप के चिट्ठे पर आया और बस यही पर खो सा गया हूँ , आप लिखते बहुत अच्छा हैं , भाषा की सरलता और मदृलता किसी को भी अपने ओर आसानी से बुला सकती है. चिट्ठाकारी के एक वर्ष पूरा होने पर बहुत-२ बधाई, अभी सुबह के ६.३० बजे हैं , केक खाने का मन नही है , अरे भाई , कुछ चाय का भी इंतजाम कर लेते . 🙂
@पंकज
धन्यवाद पंकज, मैंने चिट्ठाकार बनाया है तो गुरुदक्षिणा हमेशा देते रहना होगी, मतलब लगातार लिखते रहो।
@DR PRABHAT TANDON
प्रभातजी आप पहली बार मेरे चिट्ठे पर आए और वह भी जन्मदिन के अवसर पर, हार्दिक स्वागत। आपको चिट्ठा पसंद आया, धन्यवाद। आगे से चाय वगैरह की भी व्यवस्था रहेगी।
तुम (मालव सन्देश) जियो हजारों साल — शास्त्री फिलिप
I was looking evewryhere and this popped up like nothing!
तारीफ के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और आपके चिट्ठे का पहला जन्मदिन आपको बहुत मुबारक। हिंदी अभी बस लिखना शुरू ही किया है। आपके स्तर तक पहुँचने के लिए कुछ समय तो लगेगा 🙂
मुझे तो आज तक पता ही नही था के इन्टरनेट पर इतने भारी भरकम चिट्ठे चल रहे हैं। कुशी हुई आज यह जानके की भारत भी यहाँ है और फल फूल रहा है।
Normally I’m against killing but this article slgtehuared my ignorance.
कुशी नही, ख़ुशी, कहा ना, अभी बस शुरू ही किया है 🙂
चिट्ठे की सल्गिरा पर बहुत शुभकामनाए |
क्या आपको पता चला की आपके चिट्ठे कितने लोगों ने पढे और वह लोग़ कहाँ से थे |
मैंने हाल ही में यह हिन्दी ट्राफिक परिसंख्यान टूल http://gostats.in अपनाया है , जिससे आपकी अपने चिट्ठों पर ट्रैफिक पर जानकारी ले सकते है |
कृपया इस ग्रुप के भी सदस्य बनें
शम्भु चौधरी
http://groups.google.com/group/samajvikas
ब्लॉग को हिन्दी मे चिठ्ठा कहते है और कई जानकारीया मिली आपके चिठ्ठ से I