तांत्रिक को फिर कोई मंत्र सिद्ध करना था। पहले इस काम के लिए महाराज विक्रम ने उसकी मदद की थी। विक्रम ने उसे वेताल लाकर दिया था। वेताल विक्रम के कंधे से चौबीस बार उतर कर वापस पेड़ पर जा लटका था और पच्चीसवीं बार में विक्रम उसे पकड़ कर लाया था। हर बार अर्थात् पच्चीस बार बेताल ने विक्रम को कहानियाँ सुनाई इससे तांत्रिक की मंत्रसिद्धि में भी देर हो गई थी। विक्रम के आने पर तांत्रिक ने कहा, ”विक्रम मुझे एक बार फिर मंत्र सिद्ध करना है और इसमें तुम्हारी मदद की आवश्यकता है।” विक्रम ने उत्तर दिया, ”आप चिंता न करें, मुझे इस काम का अच्छा अनुभव है। पिछली बार भी वेताल मेरे पास से चौबीस बार भाग गया था। फिर भी मैं हिम्मत नहीं हारा और पच्चीसवीं बार में उसे लेकर आ ही गया था। जो कहानियाँ उसने मुझे उस समय सुनाईं थी वे आज पूरे विश्व में वेताल पच्चीसी के नाम से पढी जातीं हैं।” यह सुनकर तांत्रिक बोला, ”राजन्, इस बार कार्य कठिन है। पहले तो केवल एक वेताल की ही आवश्यकता थी, परंतु अब इस मंत्र सिद्धि के लिए मुझे 108 बच्चों की हड्डियों की आहूति देना है। क्या तुम ऐसा कर सकोगे?” इस पर विक्रम ने कहा, ”108 कोई बड़ी संख्या नहीं है, यह तो पहले से भी अधिक आसान कार्य है। ये तो बच्चे हैं, इन्हें तो कहानियाँ भी नहीं आती होंगी। आज इक्कीसवीं सदी के भारत में बच्चों की हड्डियाँ लाना कोई कठिन काम नहीं है। सबसे पहले तो मै निठारी जाऊँगा, वहाँ पर बहुत स्कोप है। यदि वहाँ से पूर्ति नहीं होती है तो भारत में कहीं भी निकल जाऊँगा। बच्चों की हड्डियाँ तो सभी जगह मिल जाएँगी क्योंकि ये ही सबसे आसान शिकार हैं। घर में, स्कूल में, पास में, पड़ोस में, कहीं भी इन्हें निशाना बनाया जा सकता है। कई बार घरों में तो कभी स्कूलों में इनकी निर्ममता से पिटाई होती है, जबकि इन मासूमों का का अपराध इतना बड़ा नहीं होता। यदि आपको मंत्र सिद्धि में कन्याओं की हड्डियाँ चाहिए तो ये और भी अधिक आसानी से उपलब्ध हो जाएँगी। वैसे तो भारत में कहा जाता है ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता वास करते हैं, परंतु लोगों की करनी और कथनी में बहुत अंतर है। इस देश में किसी समय बालिका जन्मते ही उस पर चारपाई का पाया रख कर मार दिया जाता था। या उसके मुँह में नमक भर दिया जाता था। यदि कोई मार न सके तो कचरे में फेंकना सबसे आसान काम है। आज भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लड़कियों को जीने नहीं दिया जाता है। सबसे पहले तो यह पता करते हैं कि आने वाला शिशु लड़की है या लड़का। यदि लड़की है तो कोशिश होती है कि उसे इस दुनिया में ही नहीं आने दिया जाए। यदि कोई परिवार लड़की का गर्भ में आना न जान पाए तो उस बालिका के जन्मते ही उसकी उपेक्षा शुरु हो जाती है। उसे पोषक आहार नहीं मिल पाता है। उसकी समुचित देखभाल नहीं होती है। इसी के चलते कुछ कन्याओं का प्राणांत हो जाता है। यदि यह सख्त जान फिर भी बच निकले तो शादी के बाद जलाने की व्यवस्था भी तो है। इतनी जलालत से जीने के बाद लड़की प्राय: किसी कन्या की माँ बनना नहीं चाहती। मारने वाले लोग किसी बालिका को मारते समय भूल जाते हैं कि माँ, बहन, मौसी, मामी, काकी, दादी, नानी जैसे रिश्ते भी हैं। वे लोग सीता, दुर्गा, गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी आदि देवियों की उपासना करते हैं परंतु अपने घर किसी कन्या का जन्म नहीं चाहते। तांत्रिक महोदय, आप निश्चिंत रहें, निठारी के दैत्यों ने तो दूसरों के बच्चों को मारा। यहाँ तो लोग अपनी ही कन्या की जान ले लेते हैं। 108 तो कुछ नहीं मैं आपको 1008 बच्चों की हड्डियाँ तुरंत लाकर दे सकता हूँ।” इतना कह कर विक्रम निठारी की ओर प्रस्थान कर गया।
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