क्रिकेट ही नहीं अन्य बातों में भी बांग्लादेश भारत से आगे है

बांग्लादेश ने भारत को क्रिकेट में तो धूल चटा ही दी परंतु वह चरमपंथियों के विरुद्ध भी हमसे आगे है। बांग्लादेश में ‍बम विस्फोट करने वाले प्रतिबंधि इस्लामी संगठनों के अतिवादियों को मौत की सजा दे दी गई। यह कार्य निर्धारित समय से भी पहले बिना किसी चेतावनी के कर दिया गया क्योंकि सरकार को इनके समथर्कों द्वारा बदला लेने का आशंका थी। इन संगठनों ने बम विस्फोट की जिम्मेदारी लेकर कहा था कि वे बांग्लादेश में इस्लामी क़ानून लागू करने की लड़ाई लड़ रहे हैं। जरा ये ख़बर देखें।
बांग्लादेश भी चरमपंथियों का धर्म नहीं देखता है परंतु आज हमारे देश में कोई अफजल गुरु के बारे में बात करने वाला ही नहीं रहा। मीडिया और देश मिलकर क्रिकेट का स्यापा कर रहे हैं। जिसने देश की सर्वोच्च संस्था संसद पर हमला किया उसे बचाने के लिए हमारे ही नेता लगे हुए थे। उन्हें अपने वोट हाथों से खिसकते नज़र आ रहे थे। वे जानते थे कि भारत की जनता थोड़े ही दिनों मे सब कुछ भूल जाएगी और ऐसा हो भी गया है। देश के ‍मुस्लिमों के भड़क जाने का भय दिखाया गया था। सांप्रदायिक दंगों का भय दिखाया गया था। मानव अधिकार वाले भी छाती कूट रहे थे। इन्हें केवल आतंक फैलाने वाले ही मानव दिखाई देते हैं, जो विस्फोट में मारे गए या जो सुरक्षाकर्मी मारे गए वो तो रोबोट थे। देश की आम जनता का क्या जीना और क्या मरना। ‍जिन्दा भी है तो कीड़ों की जिन्दगी लिए रोज तिल तिल मरते हैं। आतंकवादी तो तारणहार हैं जिन्होंने आमजन को ऐसी जिन्दगी से मुक्ति दी है। भला उन्हें क्यों फाँसी दी जाए। उन्हें तो मुक्तिदाता के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए।
मीडिया भी इस बारे न कुछ छापता है और न कुछ दिखाता है। क्योंकि यहाँ से शायद कुछ नही मिलना है। पिछले दिनों कुछ चिट्ठों में भी तर्क दिए गए कि मुंबई में हुए दंगों का बदला लेने के लिए क्रमबद्ध विस्फोट किए। ऐसा सोचते तो कश्मीर के सारे पंडित आतिशबाज़ी कर रहे होते। वे लोग अपने जमीन से धर्म के नाम पर बेदखल हो गए, परंतु हथियार उठा कर ‍निर्दोषों से बदला नहीं लिया। हम मिलजुल कर रहते आए हैं और आगे भी रहेंगे। एक घर में भाइयों में अनबन हो जाती है परंतु एक दूसरे के बिना उनका अस्तित्व नहीं है। कुछ बुद्धिजीवियों को इन बातों से हिन्दुत्व की बू आ सकती है। तो हे ज्ञानियों, ज्ञान का चश्मा हटा कर इन बातों को धर्म से निरपेक्ष होकर तथा देश के सापेक्ष होकर देखना तभी सच्चे धर्मनिरपेक्ष कहलाओगे।

7 Responses

  1. वाह बंधु!!!!! लेख बहुत ही सटीक और सीख लेने वाला है. सच है यह वही बांग्लादेश है जो आतंकवादियों से निपटने के लिए भारत से सहायता माँगता है और आतंकवाद का मुँहतोड़ जवाब देता है. वैसे भी इस देश के पास प्राकृतिक और राजनीतिक परेशानियाँ पहले भी कम नहीं हैं, लेकिन उसकी इच्छाशक्ति की भूरि-भूरि प्रशंसा करनी होगी. भारत को भी अपने इस हिम्मती पड़ोसी मुल्क से कुछ सीख लेना चाहिए नहीं तो यहाँ मंदिर, मस्जिद और संसद और ज़्यादा असुरक्षित हो जाएँगे. इससेस तो यही साबित होता है कि भारत का आतंकवाद वास्तव में किसी ज़मीनी हक़ के लिए नहीं, बल्कि महज और महज राजनीतिज्ञों के शह पर चलने वाला घिनौना कृत्य है.

  2. हम में होता दम तो क्या मजाल थी यही बांगलादेश हमारे सैनिको को मार कर फिर बाँस से लटका कर भेजता. वे तस्वीरे कौन भूल सकता है?

  3. ज़बर्दस्त लिखा आपने। पाकिस्तान और बंगलादेश भारत से बने थे, आज भी ये दोनों देश भारत की नाक मे दम कर रहे हैं। ये भी देखलिया कि किसतरह बंगलादेशीयों भारती सैनिकों को मार भगाया।

  4. धन्यवाद अखिलेशजी, संजयजी, शु्एबजी। समय जरूर बदलेगा।

  5. Atul ji..maine dekha hai ki rashtravadi logo ke man me granthi hoti hai ki kahin unhe sampradayik ya hinduvaadi na samajh liya jaye..isliye ve bar-bar safai dete rahte hain ki mai hinduvaadi nahi hoon…agar aap hinduvaadi hain to isme bura hi kya hai? aise me to aap rashtravirodhiyo aur psudo dharm-nirpeksho se behtar hi hain. hain na…?

  6. आपने बिलकुल ठीक कहा विवेकजी, ऐसा मन की किसी ग्रंथि के कारण हो सकता है। मुझे ऐसा लगा कि यदि मैं अफजल गुरु की फाँसी की बात करूँ तो मुझे मुस्लिमों के विरुद्ध न मान लिया जाए। और संभवत: इसीलिए उन साम्यवादी, बुद्धिजीवियों, धर्मनिरपेक्ष लोगों तथा मानव अधिकार वालों के लिखा है क्योंकि इन्हें मात्र एक पक्ष ही नज़र आता है। जब भी देश की किसी भी सांस्कृतिक परंपरा से लोग फिर से जुड़ने लगते हैं इन बुद्धिजीवियों और धर्मनिरपेक्ष लोगों के सीने पर साँप लोटने लगते हैं।

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